न्यायपालिका, राज्य नहीं है ।

" कानून समाज के लिए है, समाज कानून के लिए नही, इसलिए कानून को समाजिक परिवर्तनो के अनुरूप अपने को ढालना होगा।स्वच्छ और शान्तिपूर्ण समाज एवं परिवारों की आवश्यकताओं के अनुरूप कानून को परिवर्तित होना होगा। न्यायालय न्यायिक कर्तव्यों का निर्वहन करते समय राज्य नही है। राज्य और न्यायालय में अन्तर है। न्यायपालिका जिस समय न्यायिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रही है, उसके विरुद्ध किसी भी नागरिक को कोई मूल अधिकार प्राप्त नही है , जहां कोई वादकारी न्यायपालिका के माध्यम से अपने अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उपस्थित होता है, न्यायपालिका राज्य नही रह सकती है , यदि न्यायपालिका राज्य रहेगी तो नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा नहीं होगी । यही कारण है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद - 226 के होते हुए भी अनुच्छेद -227 की रचना करनी पड़ी, जिसके द्वारा उच्च न्यायालय को सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणो पर अधीक्षण की अधिकारिता दी गई है, न्यायिक कर्तव्य के पालन में न्यायालय पक्षकार के मध्य विवादों का निर्णय करते है, वे स्वय वाद मे पक्षकार नही बन जाते है ।इसी कारण न्यायालयों के विरूद्ध अनुच्छेद -226 प्रभावी नही है ।
----शिव प्रसाद श्रीवास्तव एडवोकेट दीवानी कचहरी मऊ