डाॅ. राम मनोहर लोहिया का देश की स्वतंत्रता में प्रथम योगदान ।
"बात उन दिनों की है, जब डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जर्मनी के ' हुमबोल्ट विश्वविद्यालय ' से अर्थशास्त्र में पी.एच.डी कर रहे थे। भारत मे अंग्रेज़ी सरकार के खिलाफ गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आंदोलन जोरों पर था । डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जी के पिता श्री हीरा लाल जी भी स्वाधीनता आंदोलन में बढ-चढकर हिस्सा लै रहे थे । पिता सरकार के अत्याचारों की सूचना पत्र द्वारा पुत्र को देते रहते थे, जिन्हें पढकर लोहिया जी के हृदय में अंग्रेजी शासन के प्रति घृणा की भावना प्रबल हो उठती थी ।
उसी समय जिनेवा में लीग आफ नेशंस का अधिवेशन होने जा रहा था, जिसमें भारत का प्रतिनिधित्व बीकानेर के महाराजा कर रहे थे । बहुत प्रयत्नों के बाद लोहिया जी ने इस अधिवेशन की दर्शक-दिर्घा में बैठने के दो पास हासिल कर लिए और अपने एक भारतीय मित्र के साथ दर्शक-दिर्घा में जा बैठे । बीकानेर के महाराजा का भाषण भारत में अंग्रेजी शासन की प्रशंसा और चापलूसी से भरा हुआ था । भाषण के दौरान लोहिया जी और उनके मित्र ने बीकानेर के महाराजा के भाषण का पर्याप्त विरोध किया ।
सभाध्यक्ष ने तुरंत उन्हें बाहर निकालने का आदेश दे दिया । अगले दिन के समाचार पत्र में लोहिया जी द्वारा सभापति को लिखा एक पत्र छपा, जिसमें उन्होंने भारत में हो रहे अंग्रेज़ों के अत्याचार एंव भगत सिंह को दी गई फांसी के बारे मे विस्तार से चर्चा कर भारतीय प्रतिनिधि के भाषण की धज्जियाँ उडाई थी । जब किसी ने उनसे इस विषय में पूछा तो उनका जवाब था -- " मेरा मकसद दुनिया के सामने भारत में चल रहे अन्यायपूर्ण अंग्रेज़ी शासन की पोल खोलना था, जो मैंने कर दिखाया । " उनकी इस उल्लेखनीय प्रयास ने विश्व मंच पर भारत के स्वाधीन होने के प्रयासों की अत्यंत गति प्रदान की ।
------- Shiv Prasad Srivastav
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