देश भक्ति से परिभाषित हो राष्ट्रवाद

' राष्ट्रवाद और देशभक्ति', ये शब्द समानार्थी नहीं है।एक देशभक्त अपने देश, वहाॅ की जीवन पद्धति, उसकी उपलब्धियों व उसके इतिहास व संस्कृति से प्यार करता है, लेकिन वह अपने विचार, आपने मत किसी पर नहीं थोपता।एक राष्ट्रवादी का मन भी अपने देश से प्यार करता है, लेकिन वह शक्ति व प्रतिष्ठा की अंहता से परिचालित होता है।कहीं न कहीं, किसी-न-किसी कोने में उसकी मंशा अपने विचार व अपने मत के वर्चस्व को स्थापित करने की बनी रहती है। वह अपनी जीवन पद्धति को दूसरो पर थोपना चाहता है 
जर्मन के तानाशाह शासक हिटलर ,रूस का तानाशाह शासक स्टालिन, चीन का तानाशाह शासक माओ व मुसोलिनी जिन्हें हम हेय दृष्टिकोण और हमेशा अपशब्द के साथ नाम लेते हैं, वे अपने देश के लिए राष्ट्रवादी थे, वे भी राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत थे और वर्चस्व की मानसिकता से संचालित थे।इसके विपरीत भारत का निर्माण ऐसे संतों की छत्र छाया में हुआ, जिन्होंने देशवासियों को वास्तविक देशभक्ति का पाठ पढ़ाया।वे हमें भारतीय बनाना चाहते थे न कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख या इसाई ।
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              राष्ट्रवादी या देशभक्ति, दोनो सफल व सशक्त भारत चाहते है, लेकिन देशभक्त अल्पसंख्यक सहित सभी भारतीयों की सफलता चाहते है, जबकि राष्ट्रवादियों की सोच का दायरा संकुचित एंव संकीर्ण है। एक राष्ट्रवादी अपने विचारों व मतों को लेकर बहुत आग्रही हो जाता है, जबकि देशभक्त अपने देश से प्यार करने के बावजूद आग्रही न होकर व्यापक होता है। 
           हम राष्ट्रवाद को सामान्यतया सकारात्मक रूप में लेते हैं , जबकि यह सच जुडा हुआ है कि इसने विश्व इतिहास में पर्याप्त हानिकारक भूमिका निभाई है । 19वीं सदी में एशिया और अफ्रीका में कई देशों को गुलाम बनाया । 20वीं सदी मेंं राष्ट्रवाद दो विश्वयुद्धों का कारण बना । हिटलर की मानसिकता ऐसे कलुषित राष्ट्रवाद का नाटकीय उदाहरण है । सन् 1939 और सन् 1945 के बीच हुए दुसरे विश्वयुद्ध का कारण भी यही मानसिकता थी ।देशभक्ति की सोच के कारण ही इस देश की जनता ने लोकतंत्र को जन्म दिया अधिकांशतः राष्ट्रवादी सोच के लोग  ' राजतंत्र '  के समर्थक होते हैं ।
      -----Shiv Prasad Srivastav
Advocate Shiv Prasad Srivastav