विधि - विचार

" उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवज्ञा विधि प्रशासन के उस मूल स्थान पर आघात करती है जिस पर न्यायिक प्रणाली टिकी हुई है । विधि का शासन प्रजातांत्रिक समाज का आधार है । न्यायपालिका विधि शासन की संरक्षिका है इसलिए प्रजातंत्र का केवल तीसरा स्तम्भ मात्र नहीं है बल्कि लोकतांत्रिक राज्य का केन्द्रीय स्तम्भ है । यदि न्यायपालिका को अपने कर्तव्य और कार्य प्रभाव पूर्ण ढंग से करने है तो न्यायालयों की गरिमा तथा अधिकारिता को प्रत्येक मूल्य पर सम्मानित और संरक्षित करना होगा अन्यथा हमारी संवैधानिक प्रणाली की नींव अपनी जगह से हट जायेगी, विधि शासन का और समाज के सभ्य जीवन का लोप हो जायेगा ।"
         ( न्यायमूर्ति अरजीत पसायत )

------ शिव प्रसाद श्रीवास्तव एडवोकेट दीवानी कचहरी मऊ  ( उ.प्र )
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